भारत की मिट्टियाँ, वर्गीकरण और उनका वितरण
( Soils, Classification And Distribution in India)
मिट्टी अथवा मृदा शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के शब्द सोलम (Solum) से हुई है | जिसका अर्थ है फर्श (floor)| मिट्टी पृथ्वी की सबसे उपरी परत होती है। मिट्टी का निर्माण खनिज, जैविक पदार्थो,टूटी चट्टानो के छोटे महीन कणों, बॅक्टीरिया आदि के मिश्रण से होता है। | भारत में सबसे अधिक (43.4%) भूभाग पर जलोढ़ मिट्टी पायी जाती है और अन्य मिट्टियों में काली मिट्टी, लाल मिट्टी और लैटराइट मिट्टी पायी जाती है |
देश के सभी भागों में मिट्टी की गहराई असमान रूप से पाई जाती है यह कुछ सेमी. से लेकर 30 मी. तक गहरी हो सकती है।मिट्टी के कई परतें होती हैं, सबसे उपरी परत में छोटे मिट्टी के कण, गले हुए पौधे और जीवों के अवशेष होते हैं यह परत फसलों की पैदावार के लिए महत्त्वपूर्ण होती है। दूसरी परत महीन कणों जैसे चिकनी मिट्टी की होती है और नीचे की विखंडित चट्टानो और मिट्टी का मिश्रण होती है तथा आख़िरी परत में अ-विखंडित सख्त चट्टानें होती हैं।
डॉ. जे. डब्ल्यू. लैदर को भारत में मृदा विज्ञान एवं कृषि रसायनविज्ञान का जनक कहा जा सकता है। मिट्टी के अध्ययन के विज्ञान को मृदा विज्ञान यानी पेडोलोजी कहा जाता है |पेडालोजी (Pedology) अंतर्गत मृदा की उत्पत्ति और वर्गीकरण तथा मृदा का विस्तृत अध्ययन किया जाता है | इसमें मृदा के प्राकृतिक वातावरण में ही उसका अध्ययन, जाँच तथा वर्गीकरण किया जाता है | पौधों के उत्पादन सम्बन्धी मृदा के गुणों का अध्ययन ही एडेफोलोजी कहलाता है | एडेफोलोजी (Edaphology) मृदा, पेड़ पौधों के लिए एक प्राकृतिक आवास है|
भारत में मिट्टी के प्रकार ( Types of soil in India)
भारत कृषि अनुसंधान परिषद (Indian Council of Agricultural Research-I.C.A.R.) मुख्यालय – नई दिल्ली ने भारतीय मिट्टी को 8 भागों में पहचान की है।
- जलोढ़ मिट्टी (Alluvial Soil)
- लाल और पीली मिट्टी( Red and Yellow Soil )
- काली मिट्टी (Black Soil)
- लैटेराइट मिट्टी (Laterite Soil)
- लवणीय एवं क्षारयुक्त मिट्टी (Saline and Alkaline Soil )
- शुष्क मिट्टी एवं मरुस्थलीय मिट्टी (Dry and Desert Soil)
- वनों वाली मिट्टी (Forest Soil)
- पीट एवं दलदली मिट्टी (Peaty and Other Organic soil )
1. जलोढ़ मिट्टी (Alluvial Soil): भारत में सबसे अधिक (43.4%) भूभाग पर जलोढ़ मिट्टी पायी जाती है | यह भारत में मुख्य रूप से दो क्षेत्रों में पाई जाती है- 1- उत्तर भारत के मैदान में 2- तटीय क्षेत्रों में | उत्तर भारत के मैदान में जलोढ़ मिट्टी सतलज के मैदान से लेकर पूर्व में ब्रम्हपुत्र के मैदान तक मिलता है। तटीय मैदान के अंतर्गत जलोढ़ मिट्टी महानदी, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी नदियों के डेल्टा क्षेत्र में और पश्चिमी तटीय मैदान के अंतर्गत केरला और गुजरात में पाई जाती है। इस मृदा में पोटाश व चूना प्रचुर मात्रा में पाया जाता है तथा फास्फोरस, नाइट्रोजन एवं जीवांश की कमी होती है | यह मिट्टी गन्ना, गेहूं, धान, तिलहन, दलहन आदि की खेती के लिए बहुत ही उपजाऊ होती है
जलोढ़ मिट्टी दो प्रकार के होते हैं।
1- खादर
2- बांगर
- नदी के आसपास बाढ़ क्षेत्र की जलोढ़ मिट्टी खादर मिट्टी कहलाती है। खादर मिट्टी हर साल नई हो जाती है बाढ़ के माध्यम से
- नदी से दूर ऊंचे क्षेत्रों के पुराने जलोढ़ को बांगर मिट्टी कहते हैं।
- बांगर मिट्टी हर साल नहीं नहीं होती है अतः खादर मिट्टी अपेक्षाकृत अधिक उपजाऊ होता है।
2.लाल और पीली मिट्टी (Red And Yellow Soil): – भारत में दूसरा सर्वाधिक क्षेत्र 18% में पाया जाने वाला मिट्टी लाल मिट्टी है। इस मिट्टी का विस्तार मुख्य तौर से तमिलनाडु, कर्नाटक, दक्षिण पूर्वी महाराष्ट्र, ओडिशा, पूर्वी मध्य प्रदेश, बुन्देलखंड के कुछ भागों में तथा छोटा नागपुर में है | इस प्रकार यह देश में पायी जाने वाली दूसरी सबसे अधिक विस्तृत क्षेत्र वाली मृदा है | इसका निर्माण ग्रेनाइट, नीस और सिस्ट जैसे खनिजों से होता है | इसमें लोहे का अंश सबसे अधिक होता है | लाल मिट्टी पठारी भारत के कम वर्षा वाले क्षेत्रों की मिट्टी हैं। यह उपजाऊ मिट्टी नही है, यही कारण है कि खाद्यान्नों की खेती यहाँ कम होती हैं। इसमें पैदा की जाने वाली फसलें तम्बाकू, बाजरा, तिलहन और गेहूं हैं |
3.काली मिट्टी (Black Soil) : इस मिट्टी का विस्तार मुख्यतः गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, और तमिलनाडु के लावा क्षेत्रों में पाया जाता है | यह भारत के 15% भूभाग में पायी जाती है | उत्तर प्रदेश में इसे करेल तथा कपास मृदा भी कहा जाता है | इसमें लोहा चूना, पोटैशियम, मैग्नेशियम, तथा एल्युमिनियम की मात्रा बहुत होती है | इसमें पैदा की जाने वाली मुख्य फसलें कपास, मूंगफली, सोयाबीन, तिलहन एवं गेहूं इत्यादि हैं|
4.लैटेराइट मिट्टी (Laterite Soil) : यह मिट्टी रासायनिक क्रियाओं तथा चट्टानो के टूट-फूट द्वारा शुष्क मौसम में बनती है। इस मिट्टी में भी आइरन ऑक्साइड की अधिकता पाई जाती है। यह देखने में लाल मिट्टी की तरह लगती है, किंतु उससे कम उपजाऊ होती है। ऊँचे स्थलों में यह प्राय: पतली और कंकड़मिश्रित होती है और कृषि के योग्य नहीं रहती, किंतु मैदानी भागों में यह खेती के काम में लाई जाती है। यह मिट्टी तमिलनाडु के पहाड़ी भागों, केरल, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल तथा उड़ीसा के कुछ भागों में, दक्षिण भारत के पठार, राजमहल तथा छोटानागपुर के पठार, असम इत्यादि में सीमित क्षेत्रों में पाई जाती है। दक्षिण भारत में मैदानी भागों में इसपर धान की खेती होती है और ऊँचे भागों में चाय, कहवा, रबर तथा सिनकोना उपजाए जाते हैं। इस प्रकार की मिट्टी अधिक ऊष्मा और वर्षा के क्षेत्रों में बनती है। इसलिए इसमें ह्यूमस की कमी होती है और निक्षालन अधिक हुआ करता है। इस मिट्टी का रासायनिक संघटन इस प्रकार है-
5. लवणीय एवं क्षारयुक्त मिट्टी (Saline and Alkaline Soil ): यह स्थान बद्ध मिट्टी है जो देश के लगभग 7% भूभाग पर पायी जाती है | इसमें लोहा, एल्युमिनियम, अधिक मात्रा में पाये जाते हैं तथा इसमें नाइट्रोजन, पोटाश, फास्फोरस, चूना आदि की कमी होती है | इसमें पैदा होने वाली मुख्य फसलें हैं :चाय, कहबा, रबर, काजू और सिनकोना आदि |
6 . शुष्क और मरुस्थलीय मिट्टी (Day and Desert Soil): ये मृदाएँ शुष्क तथा आर्द्र शुष्क प्रदेशों में पायी जाती हैं इस प्रकार की मृदाएँ मुख्य रूप से राजस्थान, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, दक्षिणी पंजाब के भागों में पायीं जातीं हैं | इस प्रकार यह मिट्टी 2.85 लाख किमी2 भूभाग में फैली है| पानी की कमी और अधिक तापमान के कारण ये मृदाएँ टूटकर बालू के कणों में विखंडित हो जातीं हैं | इसमें फास्फोरस अधिक मात्रा में पाया जाता है लेकिन इनमे जीवांश ईधन और नाइट्रोजन की कमी होती है |
7.पर्वतीय मृदाएँ एवं वनों वाली मिट्टी (Forest Soil and Hill Soil): इसका विस्तार भारत में लगभग 3 लाख वर्ग किमी में पाया जाता है | इस प्रकार की मिट्टियाँ कश्मीर से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक फैली हई है | इसमें जीवांश अधिक मात्रा में पाये जाते हैं लेकिन फास्फोरस, पोटाश, चूना की कमी होती है | पर्वतीय मिट्टी भारत में हिमालय के साथ-साथ पाई जाती है इस कारण जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश में पाई जाती है। हिमालय पर वनस्पतियों एवं जीवों की प्रचुरता है इसी कारण हिमालय के पर्वतीय मिट्टी में ह्यूमस की प्रचुरता पाई जाती है। ह्यूमस की अधिकता के कारण पर्वतीय मिट्टी में अम्लीयता के गुण आ गए हैं जिसके कारण यहां सेब, नासपाती एवं चाय की खेती होती है। पर्वतीय मिट्टी एक पूर्ण विकसित मिट्टी नहीं है बल्कि यह एक अविकसित तथा निर्माणधीन मिट्टी है। अर्थात इसका निर्माण अभी भी हो रहा है।
8.पीट एवं दलदली मिट्टी (Peaty and Other Organic soil ): इस मिट्टी में ज़्यादातर जैविक तत्व अधिक मात्रा में पाए जाते हैं। यह सामान्यतः आद्र-प्रदेशों में मिलती है। दलदली मिट्टी उड़ीसा के तटीय भागों, सुंदरवन के डेल्टाई क्षेत्रों, बिहार के मध्यवर्ती क्षेत्रों, उत्तराखंड के अल्मोड़ा और तमिलनाडु के दक्षिण-पूर्वी एवं केरल के तटों पर पाई जाती है।
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